कोई बात ही ना हो जैसे बताने के लिए,
वजह ढूंढते है लोग आज मुस्कुराने के लिए |
क्या दुश्मनी है मेरी तुझसे आज बता दे,
मैं ही थी क्या अकेले चोट खाने के लिए |
तुम्हे अंदाज़ा भी नहीं कि हमे हुआ क्या,
बहुत रोना पड़ा किसी को हँसाने के लिए |
जो दिल के सच्चे है,उनकी आखों में झाँक,
हर कोई तो होता नहीं आजमाने के लिए |
चैन से सोते हो तुम अपने घर में महफूज़,
तलाशती हूँ घर कोई रात बिताने के लिए |
दिल अपना भी बिलकुल तुम्हारी तरह है,
कठोर तो हूँ बहुत ,मगर ज़माने के लिए |
कुछ अहसास दफन है दिल के भीतर ही,
हर चीज़ तो होती नहीं दिखाने के लिए |
शालिनी श्रीवास्तव
पूर्व रिसर्च एसोसिएट
केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान लखनऊ तथा
लेखिका
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